सीकर. एक गाय की मौत के बाद उसके पास बिलखते मासूम बछड़े और परिवार को देख एक इंजीनियर का ह्रदय करुणा से ऐसा भरा कि उसने गोसेवा को मिशन बनाकर नई मिसाल कायम कर दी। आसपास के गांवों में गाय के बीमारी होने या उसकी मौत की सूचना पर वह अपना काम छोड़कर लोडर लेकर पहुंच जाता है। लक्ष्मणगढ़ के भिलुण्डा गांव निवासी संतोष बाजड़ोलिया गो सेवा के साथ अब तक 240 गायों का अंतिम संस्कार कर चुका है।
सबसे पहले संतोष को सूचना देते हैं ग्रामीण
संतोष खेती करने के साथ खुद का लोडर रखता है। इससे वह भिलुंडा सहित पंचायत के चंदपुरा, बजाड़ों की ढाणी, सेवदा की ढाणी, रुल्याण पट्टी, भाखरों की ढाणी सहित आसपास के गांवों में गो- सेवा कर रहा है। इन गांवों में लंपी या अन्य बीमारी से गाय की मौत होने पर ग्रामीण सबसे पहले संतोष को ही सूचना देते हैं। वह अपने ड्राइवर महेन्द्र के साथ लोडर लेकर पहुंचता है और गाय को उठाकर उसे जोहड़ी में गड्ढा कर गाड़ देता है। गायों की बीमारी की सूचना पर भी वह चिकित्सक से संपर्क कर उनके उपचार का भरसक प्रयास करता है।
‘संतोष’ के लिए काम कर रहा संतोष
एक गाय दफनाने का खर्च 500 रुपए होता है। संतोष यह काम नि:शुल्क करता है। गो सेवा से उसे सुकून मिलता है। उसने 240 गायों की अंतिम क्रिया का बकायदा रेकॉर्ड भी तैयार कर रखा है।
बिलखते बछड़े को देख पैदा हुआ सेवा भाव
गांव के एक घर में एक माह पहले गाय की मौत होने पर संतोष गया तो मृत गाय के पास 4-5 दिन के बछड़े को बिलखते देख उसके मन में गो-सेवा का भाव जागा। तब से उसने गो सेवा करने का संकल्प ले लिया।
इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर चुनी खेती
संतोष मेकेनिकल इंजीनियर है, जो पुणे की निजी कंपनी में साढ़े चार लाख रुपए के पैकेज की नौकरी छोड़ चुका है। उसने परिवार का सहारा बनने के लिए गांव में रहने का मानस बनाया और पिता के साथ खेती शुरू कर दी और एक लोडर भी ले लिया। इससे वह पंचायत के विकास कार्यों के साथ अन्य कार्य भी करता है। इसी लोडर से अब वह गो-सेवा कर रहा है।